poems
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बरी अजीब हैं ये जिंदगी की राहें |
कभी तपती धरती में भी पानी,
कभी बसंत में भी पतझर |
कभी घने कोहरे में इन्सान दिखे,
कभी सूरज की किरणे भी उजाला न दे|
कभी चट्टानों से रगर खाती जिंदगी
कभी क़टीले रहो में भी फूल बिछे |
मौसम क़ा हर एक रंग हैं ये जिंदगी
हर पल कुछ नया सिखाती जिंदगी |
कृतिका
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