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गाँव

poems
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परदेशी हो गयें हम ,
भूल गयें हम अपने गाँव |
कहाँ गई व़ो मिठें बोल ,
कहाँ गई बरगद क़ि छाव |
व़ो पगडंडी कें रास्तें खेतों में जाना ,
व़ो साँझ क़ि आरती व़ो हँसना हँसाना |
उजर गया सब गाँव मोहल्ला ,
उजर गया अब अपना गाँव |

कृतिका
गाँव के बदलते तस्वीर पर एक छोटी सी कविता !

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