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अनसुलझी पहेली

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राहो में अँधेरा हो ,
तो साया भी साथ न दें |

खुशियों भरी आँगन हो ,
तो बेगाने भी अपने बने |

दीपो की चमचमाती रोशनी भी ,
घर का चिराग बुझाये |

मीलों फैली समुंदर भी ,
एक प्यासे को तरसायें |

पतझर में पत्ते रूठें ,
वही बसंत में बाहें फैलाएं |

अपनों की दुनिया में ,
गैंरो बने हम चलें |

हाय कैसी है ये उन्सुल्झी पहेली |
कुदरत से जोरी इन्शानियत को ,
इन्शान ही न समझ पाएं |

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