Menu
blogid : 8295 postid : 47

भीख

poems
poems
  • 12 Posts
  • 26 Comments

मैली सी छितरे में खड़ी,
लोगो की नजरो से बचती ,
डरी,सहमी सी दिखती ,
भूखे पेट की दोहाई देती ,
फटें कपड़ो से लाज ढकती,

थी एक लड़की
हड्डी की ढाचो में खड़ी ,

क्या पता था उसे
वहसी दुनिया हड्डी को भी न छोडेंगे ,
जो कपडे थें उसे भी फाड़ देंगे ,
मांगी भीख इज्ज़त ही ले लेंगे ,

कोशती अपनी जिंदगी को ,
अमीरों ने भीख क्या दी ,
शरीर में एक इज्ज़त थी ,
उसे भी भीख मांग गये |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply