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उलझन

poems
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समय क़ि घड़ियाँ बढती गई
लोग बदलतें गये,
नहीं बदली इन्शानो क़ि उलझन |

गरीबो कें निबालो का हल ,
तन्हा इन्शानो क़ि चाहत ,
बिग्ड़तें देश क़ि तस्वीर ,
रोती हुई रूहों क़ि आत्मा;

और उलझतें गयें लोग
सवालो का दायरा बढता गया ,
इन्शानो क़ि हवानियत बत्तर हुई |
चिखें दबती गई ,
हम तमाशा देखतें रहें ,

क्या यही हैं सच्चाई ,
इन्शानो क़ि चिख इन्शान न सुने
देश क़ि हकीकत से अंजान,
अपनी सपनों क़ि उरानें भरतें रहें |

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